पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई

श्री मोरारजी रणछोड़ जी देसाई भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे ।आप ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत रत्न तथा पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान निशान ए पाकिस्तान प्रदान किया गया ।वह भारत के ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री भी थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बजाय अन्य दल से थे। 29 फरवरी 18 96 में वलसाड के भदेली ग्राम में जो उस समय मुंबई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत आता था ब्राह्मण कुल में उनका जन्म हुआ़ तथा 16 अप्रैल 1995 में मुंबई में उनका स्वर्गवास हुआ ।वह 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। 24 मार्च 1977 को उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी उस समय उनकी आयु 81 वर्ष की थी। मुंबई में कालेज शिक्षा के दौरान ही उन्होंने महात्मा गांधी ,बाल गंगाधर तिलक एवं अन्य बड़े कांग्रेसी नेताओं को सुना था और प्रभावित होकर वह स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल भी जाना पड़ा था। स्वतंत्रता से पूर्व मुंबई राज्य के मंत्रिमंडल में रहे तथा 1952 में मुंबई के मुख्यमंत्री बने ।उस समय तक गुजरात तथा महाराष्ट्र, मुंबई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे। मुरारजी देसाई हमेशा अपनी बात ऊपर रखा करते थे यानी अपनी बात पर दृढ़ रहते थे। सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी तथा अपनी बात पर अड़े रहने के लिए जाने जाते थे । पूज्य गुरुदेव उन्हें जिद्दी नाम से संबोधित करते थे। उज्जैनगुरुदेव के प्रति मोरारजी भाई बहुत श्रद्धा भाव रखते थे तथा पूज्य गुरुदेव को दंडवत प्रणाम करते थे । संन 1951 की यह बात है तब मोरारजी देसाई मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे। पूज्य गुरुदेव मुंबई के वरसोवा में ठहरे हुए थे। मोरारजी भाई उनके दर्शनों के लिए वहां आए। पूजनीय पार्वती बहन जी भी उस समय वहां पर उपस्थित थी ।गुरुदेव ने उस समय मुरारजी भाई को कहा कि 1 दिन तुम भारत के प्रधानमंत्री अवश्य बनोगे। मुरारजी भाई ने बड़ा आश्चर्य व्यक्त किया तथा कहा कि यह कैसे सब कैसे होगा? पूज्य गुरुदेव बोले तुम देखना एक दिन ऐसा अवश्य आएगा । मुरारजी देसाई राजनीति में सक्रिय रहे तथा राज्य स्तर पर एवं देश स्तर पर भी वह मंत्री रहे किंतु योग्यता एवं वरिष्ठता होने के बावजूद भी वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। मार्च 1958 से अगस्त 1963 तक मुरारजी भाई भारत के वित्त मंत्री रहे। उसी समय संभवतया यह 2 फरवरी 1963 की बात है पूज्य गुरुदेव मुंबई से जयपुर के लिए प्लेन में पधार रहे थे ,साथ में श्री ठाकुर भाई भी थे ।उसी प्लेन में मुरारजी भी यात्रा कर रहे थे ।पूज्य गुरुदेव ने अपने चेहरे के आगे अखबार लगा लिया ताकि कोई उनका चेहरा देख ना सके। जयपुर में जब सभी लोग प्लेन से उतर गए उसके बाद अंत में गुरुदेव प्लेन से नीचे पधारे ।ठाकुर भाई ने इसका कारण पूछा। गुरुदेव बोले कि ठाकुर भाई तुम्हें पता है इस प्लेन में कौन बैठा था ?ठाकुर भाई ने उत्तर दिया कि मोरारजी देसाई। गुरुदेव बोले अभी किस पोस्ट पर हैं ?ठाकुर भाई ने जवाब दिया भारत के फाइनेंस मिनिस्टर हैं ।तो गुरुदेव बोले कि अभी यदि मुरारजी भाई मेरे को देखते तो मुझे दंडवत प्रणाम करते कि नहीं? और यदि मुरारजी मेरे को दंडवत करते तो यह जो सारी भीड़ उनको एयरपोर्ट पर लेने आई है वह भी करती।ठाकुर भाई ने कहा हां गुरुदेव यह तो बात सही है। तो गुरुदेव बोले तो क्या इससे मेरी शांति भंग नहीं होती और मेरा यहां जयपुर में निवास करना कष्टप्रद नहीं हो जाता ।सारी भीड़ मेरे को घेरे रखती। गुरुदेव हमेशा प्रचार-प्रसार के खिलाफ रहे और हमेशा ऐसे अवसरों से बचते रहे। सन 1966 की यह बात है गुरुदेव मिरज में विराज रहे थे। सेवा में पूजनीय कुमुद बहनजी थी। पूज्य गुरुदेव ने उनसे अपनी डायरी में लिखवाया" जिद्दी प्रधान पद प्राप्त करेंगे " सन 1969 में पूज्य गुरुदेव स्वास्थ्य लाभ एवं आराम हेतु बेंगलुरु के रामकुमार मिल गेस्ट हाउस में विराजे थे ।मेरे पिता श्री योगेंद्र शंकर जी शर्मा पूज्य गुरुदेव की सेवा में थे ।उन्हीं दिनों जुलाई 1969 में कांग्रेस का अखिल भारतीय अधिवेशन बेंगलुरु के लाल बाग में हो रहा था। देशभर से सभी बड़े बड़े नेता गण वहां पर उपस्थित थे ।11 जुलाई 1969 को पूज्य गुरुदेव के दर्शन को श्री यू एन ढेबर, श्री गिधूभाई कोटक तथा अन्य बड़े-बड़े राजनेता रामकुमार मिल गेस्ट हाउस पूज्य श्री के दर्शनार्थ आए। उन्हें दर्शनों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। कारण कि गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। मेरे पिताजी बताते हैं कि इन लोगों ने गुरुदेव से प्रार्थना की कि मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। पूज्य गुरुदेव बोले कि हां मुरारजी भारत के प्रधानमंत्री अवश्य बनेंगे लेकिन कांग्रेस से इस्तीफा दे तो। इन लोगों के जाने के बाद पिताजी बताते हैं जी गुरुदेव बोले यदि मोरारजी कांग्रेस से इस्तीफा देते हैं तो भले वह 1 दिन के लिए ही सही भारत के प्रधानमंत्री अवश्य बनेंगे ,लेकिन वह इस्तीफा नहीं देंगे और कांग्रेसमें इन की बेइज्जती होगी। आगे चलकर कुछ दिनों बाद कहानी यह बनी कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने मोरारजी एवं अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से मनमुटाव के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इंदिरा का गठन कर लिया । पुराने लोगों को मोरारजी सहित दरकिनार कर दिया गया। बाद में आपातकाल लगा तथा 1977 में आम चुनाव हुए ।मोरारजी देसाई ने जनता पार्टी का गठन किया। चुनाव में जीत जनता पार्टी की हुई और मोरारजी देसाई ने दिनांक 24 मार्च 1977 को भारत के चौथे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। गुरुदेव ने अपनी डायरी में जब वह रांची में विराजे थे दिनांक 19 जुलाई 1965 को लिखा था" जिद्दी का कांग्रेश से वर्चस्व हटे गा इसमें शंका नहीं वस्तु दूसरी होगी" । और हुआ भी यही मोरारजी को कांग्रेसी छोड़कर जनता पार्टी का गठन करना पड़ा और उसके बाद ही वह प्रधानमंत्री बन सके। इस प्रकार गुरुदेव की भविष्यवाणी जो 1951 में ही की थी अक्षरशः सत्य हुई। प्रधानमंत्री बनने के बाद 2 अप्रैल 1978 को मोरारजी देसाई चित्रकूट पधारे ।उस समय डॉक्टर विष्णु भाई जोबन पुत्रा वहां की सारी व्यवस्था संभालते थे। मुरारजी भाई के आने से पूर्व सेठ श्री अरविंद भाई मफतलाल चित्रकूट पहुंच चुके थे । उन्होंने पूजनीय पार्वती बहन जी एवं पूजनीय दमयंती बहन जी को भी चित्रकूट इस हेतु बुलाया था। माताजी की अस्वस्थता के कारण पूजनीय दमयंती बहन जी वहां नहीं पहुंच पाई थी। 2 अप्रैल 1978 को प्रातः 9:00 बजे हेलीकॉप्टर द्वारा मोरारजी देसाई कर्वी पहुंचे ।कर्वी से कार द्वारा सीधे श्री रघुवीर मंदिर बड़ी गुफा पर पधारे। वहां युगल सरकार एवं गुरुदेव के दर्शन किए। यहीं पर सेठ श्री अरविंद भाई ने पार्वती बहन का परिचय मुरार जी भाई से कराया। कहा की यह मेरी गुरु बहन है। यहां से पूरा काफिला सामने ही जानकीकुंड चिकित्सालय परिसर में पहुंचा। जहां मोरारजी देसाई ने एक सभा को संबोधित किया। श्री सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट की ओर से गरीब लोगों को गाय और बछड़ा प्रदान किए गए। शराब न पीने की कसमें ग्रामीणों को दिलाई तथा पूरे परिसर का भ्रमण किया ।यहां से जाने के पश्चात उन्होंने रामायण मेले का उद्घाटन भी किया। मोरारजी देसाई के रघुवीर मंदिर परिसर में आने से पूर्व एक और घटना घटित हुई । श्री राजनारायण जो उस समय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे वह अपने दल बल के साथ श्री रघुवीर मंदिर में आए ।उस समय श्री अरविंद भाई गुरु मढी में अपने नित्य पूजा कर में व्यस्त थे तथा उनके स्वागत सत्कार के लिए खड़े नहीं हुए। यह देखकर राजनारायण बहुत क्रोधित हुए तथा अरविंद भाई को देख लेने की धमकी देकर वहां से गए। सेठ श्री अरविंद भाई ऐसी किसी बात की परवाह नहीं करते और अपने नियम के पक्के थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछ गुरुदेव जो त्रिकालदर्शी थे और उन्होंने सन 1951 में ही इस बात की घोषणा कर दी थी कि मोरारजी 1 दिन भारत के प्रधानमंत्री अवश्य बनेंगे ।जिसकी स्वयं मोरारजी को भी उस समय उम्मीद नहीं थी। राज्यपाल शर्मा, झालावाड़ (राजस्थान)

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